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उदरामसर
श्री कुंथुनाथजी का मन्दिर
यह ग्राम बीकानेर से ७ मील दक्षिण में है । यहाँ ओसवालों के ३० घर हैं । सं० १६८८ में बोथरा हजारीमलजी आदि ने खरतर गच्छीय उपाश्रय के ऊपर इस मन्दिर को बनवा कर माघ सुदि १० उ० जयचन्द्रजी गणि से प्रतिष्ठा करवाई ।
श्री जिनदत्तसूरि गुरु मन्दिर
यह दादावाड़ी गांव से १ मील दूरी पर अवस्थित है इसकी चरण पादुकाओं पर सं १७३५ में बीकानेर के संघ बनवाने का लेख है। इसका जीर्णोद्धार जेसलमेर के सुप्रसिद्ध बाफणा बहादुरमलजी आदि ने श्री जिनहर्षसूरिजी के उपदेश से सं० १६६३ मिति आषाढ़ सुदि १ को करवाया था। इस मन्दिर के बाहर नबचौकिये के पास महो० रघुपतिजी और उनके शिष्य जगमालजी के स्तूप है कविवर रघुपतिजी यहाँ बहुत समय तक रहे थे उन्होंने उदरामसर के सम्बन्ध मैं इस प्रकार लिखा है।
-:
पूजौ ।
ए
प्रथम सुक्ख पोसाल मिष्ट पाणी सुख दूजौ । तीजौ सुख आदेश पादुका चौथे पांचमै सुख पारणौ खीर दधि मुगतौ खावौ । छट्ठे सुख श्री नगर दौड़ता आवो जावो । गुरु ज्ञान ध्यान श्रावक सको नमण करे सिर नामनै । रघुपति अठै सात सुख क्यूं छोड़ी ए गामने ||१|| बूढ़ा पैसुखिया रहाँ उदयरामसर आय । पूर पुण्य प्रमाणतें रघुपत्ति वृद्धि बाण सितक रूपक बास पेले सीपाणी श्रावक सोखव्या हरख आहार पाणी अवल प्रघलि बलि परिपाटी || आदर खाणी मान अपार खूब जसवारां खाटी ॥ पर गच्छ हुता पण प्रेम सुं कथन शुद्ध सेवा करी । इरीत आठ दस वरसमें श्री रघुपति लीला करी ॥
सवाय ||
वरणाया ।
सवाया ॥
यहां प्रति वर्ष भाद्रपद शुक्ला १५ को मेला भरता है जिसमें मोटर गाड़ी, इक्के, ऊँठ, घोड़े
आदि सैकड़ों सवारियों पर यात्री लोग एकत्र होते हैं। दादासाहब की पूजा, गोठे आदि होती हैं यह मेला सर्व प्रथम सं० १८८४ में श्रीमद् ज्ञानसारजी के शिष्य सदासुखजी ने चालू किया था जिसका उल्लेख सेवग हंसजी कृत गीतमें पाया जाता है।
"Aho Shrut Gyanam"