________________
[ ४० 1
मूलनायक श्री सुपार्श्वनाथजी की प्रतिमा सं० १९३५ में श्री जिनहंससूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित और बीकानेर संघ कारित है | यह मन्दिर सं० १६३५ के आसपास निर्मित हुआ ।
गंगाशहर
यह बीकानेर से १|| मील दूर है यहां ओसवालोंके ७५० घर हैं ।
रामनिवास
यह मन्दिर गंगाशहर में प्रवेश करते ही सड़क पर स्थित श्रीरामचन्द्रजी बांठिया की बगीची में है । इसके मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिमा सं० १६०५ वैशाख शु० १५ को श्री जिनसौभाग्यसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित है। इसका प्रबन्ध श्री रामचन्द्रजी के पौत्र श्रीयुक्त फौजराजजी बांठिया करते हैं ।
श्री आदिनाथजी का मन्दिर
यह मन्दिर गंगाशहर में सड़क के ऊपर हैं। श्री सुमतिमण्डन गणि ( सुगनजी महाराज ) कृत स्तवन में प्रभु की प्रतिष्ठा का समय १९०० मि० सु० १५ को होनेका उल्लेख है । पर स्तवन की अशुद्धं प्रति मिलने से संवत् संदिग्ध है। दादासाहब के चरणों पर सं० १९७० ज्येष्ठ बदि ८ को सावणसुखा संसकरणजी ने ऋषभमूर्त्ति, दादासाहब के चरण व चक्रेश्वरी देवी की मूर्ति को इस मन्दिर में पधराने का लिखा है। इसकी देखरेख श्री सुगनजी के उपाश्रय के कार्यकर्ता करते हैं ।
भीनासर
श्री पार्श्वनाथजी का मन्दिर
यह विशाल मन्दिर भीनासर के कुएँ के पास है । इसे सं० १६२६ मिती चैत्र सुदि १ के स्तवन में मंत्रीश्वर कोचर साहमलजी ने बनवाया लिखा है । इसके मूलनायक सं० १९८१ श्री जिनदत्तसूरि प्रतिष्ठित हैं। इसका प्रबन्ध कोचरों के हाथ में १७२ घर हैं । यह स्थान बीकानेर से ३ मील और गंगाशहर से
1 यहाँ ओसवालों के संलग्न है ।
श्री महावीर सिनोटरियम
उदरामसर के धोरों पर वैद्यवर श्री भैरवदत्तजी आसोपाने ये आश्रम स्थापित किया है । हिन्दू मन्दिरों के साथ जैन मन्दिर भी होना आवश्यक समझ कर श्री आसोपाजी ने विदुषी आर्या भी विचक्षणश्रीजी से प्रेरणा की, उनके उपदेश से जैन संघकी ओर से बीकानेर के चिन्तामणिजी के मन्दिरवत्र्त्ती श्री शान्तिनाथ जिनालय से पार्श्वनाथ प्रभु की मूर्ति ले जाकर स्वतन्त्र मन्दिर बनवा कर स्थापित की गई है ।
"Aho Shrut Gyanam"