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चूरू
यह शहर बीकानेर से दिल्ली जानेवाली रेलवे लाइनका मुख्य स्टेशन है और रतनगढ़ से २६ मील है। यहां ओसवालोंके २६० घर हैं । यहाँ खरतरगमका बड़ा उपाश्रम, मंदिर और दादाबाड़ी है। इन सबकी व्यवस्था यतिवर्य श्री ऋद्धिकरणजी के स्टेट संरक्षक ट्रस्टी करते हैं ।
श्री शांतिनाथजी का मन्दिर
यह मंदिर बाजार में खरतरगच्छके उपाश्रयसे संलग्न है । इस मन्दिरका निर्माण समय अज्ञात है। जीर्णोद्धार यति ऋद्धिकरणजी ने बहुत सुन्दर (सं० १९८१ से १६६६ तक ) प्रचुर द्रव्य व्ययसे करवाया है। मूलनायकजी की प्रतिमा सं० १६८७ में विजय देवसुरि प्रतिष्ठित है ।
दादावाड़ी
यह भगवानदास बागलाकी धर्मशाला के पास है। इसमें कुआँ, बगीचा और कई इमारतें बनी हुई हैं। स्थान बड़ा सुन्दर और विशाल है। इसकी कई ईमारतें आदि भी यति ऋद्धिकरणजी ने बनवाई हैं। इस दादावाड़ी में श्रीजिनदत्तसूरिजी के चरण सं० १८५१ और श्री जिनकुशलसूरिजी के चरण सं० १८५०, श्रीजिनचंद्रसूरिजी के सं० १६४० एवं अन्य भी बहुत यतियोंके चरणपादुके स्थापित हैं ।
राजगढ़
यह सार्दूलपुर स्टेशन नामसे प्रसिद्ध है जोकि बुरूसे ३६ मील है । यहां ओसवालों के १५० घर हैं । उपाश्रय से संलग्न श्रीसुपार्श्वनाथजी का मन्दिर है । श्री सुपार्श्वनाथजी का मन्दिर
यह मन्दिर कब प्रतिष्ठित हुआ इसका कोई उल्लेख नहीं है परदादा साहब के चरण सं० १८६७ मिती वैशाख सुदि ३ के दिन प्रतिष्ठित हैं ।
रिणी ( तारानगर )
राजगढ़ से लगभग २२ मील है, प्रतिदिन मोटर-वस जाती है। यह नगर बहुत प्राचीन है। यहां ओसवालोंके १७५ घर हैं । खरतरगच्छका उपाश्रय, जैन मन्दिर और दादावाड़ी है । श्री शीतलनाथजी का मन्दिर
इस मन्दिर के निर्माणका कोई शिलालेख नहीं मिला। बीकानेर के ज्ञान भंडार के १ पत्र में इसके निर्माणके सम्बन्ध में इस प्रकार लिखा है :- सं० ६६६ मिती फागुण वदि १३ बुधवार पालले पुहर श्रीरिणी में जैन से देहरो तिण री नीव दीवी सेठ लखो खेतो लालावत रो करायो बहू गोष्ण बेटी देवै हेमावत री देहरै री सोंप भोजग जैतो देवै रे नुंधी जसै देदावत रो बेटोराज जसवंत डाहलियै रो गणेश नीवावत से राज फोगे देहरै रो वेजारो भीखो लगावह अहमद वरस मा देहरो प्रमाण चढ्यो देहरो श्रीशीतलनाथजी रो तेहनी उत्पत्त जाणवी ।
"Aho Shrut Gyanam"