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सूरिजीको प्रतिष्ठित है ! यहाँ सं० १६०४, १६०५, १६१६ में श्रीजिनसौभाग्यसूरिजी प्रतिष्ठित कई प्रतिमाएं हैं। दूसरे तल्लेमें दो देहरियां है जिनमें एकमें चौमुखजी हैं। खरतर गच्छ पट्टावली के अनुसार ऊपर तल्लेका मन्दिर श्रीसंघने सं० १६०४ माघ सुदि १० को बनाया और वहाँ श्री जिनसौभाग्यसूरिजी ने बिम्ब प्रतिष्ठा की। बगल की देहरी व ऊपर की कई प्रतिमाएँ सं० १९०४ ज्येष्ठ कृष्ण ८ शनिवार श्रीजिनसौभाग्यसूरि प्रतिष्ठित है । ये प्रतिमाएं यहीं प्रतिष्ठित हुई जिनका उल्लेख श्रीजिनसौभाग्यसूरि व अभय कृत स्तवनों में पाया जाता है।
श्री शांन्तिनाथजी का मन्दिर यह मंदिर नाहटों की गुवाड़ में खरतराचार्य गच्छके उपाश्रय के सन्मुख है। इसका निर्माण सं० १८६७ वैशाख शुक्ल ६ गुरुवार को श्रीसंघ ने श्रीजिनोदयसूरि के समय में कराया। मूलनायकजी की प्रतिमा गोलछा थानसिंह मोतीलाल कारित और श्री जिनोदयसूरि प्रतिष्ठित है ! बिम्ब प्रतिष्ठा महोत्सव गोलछा माणकचंदजी ने करवाया। इसके दोनों तरफ दो देहरियां हैं। एक अलग देहरी में गौतमस्वामी की मूर्ति व जिनसागरसूरि के चरण स्थापित हैं।
श्री पद्मप्रभुजी का देहरासर यह पन्नीवाई के उपाश्रय में है। इसकी प्रतिष्ठा कब हुई यह अज्ञात है ।
श्री महावीर स्वामीका मन्दिर यह मन्दिर आसानियों के चौकमें संखश्वर पार्श्वनाथजी के मन्दिर के संलग्न है। इसकी प्रतिष्ठा या निर्माणकाल का कोई उल्लेख नहीं मिलता।
श्री संखेश्वर पार्श्वनाथजी का मन्दिर यह मंदिर उपर्युक्त मंदिर और पायचंदगच्छ के उपाश्रय से संलग्न है। यह भी कब बना अज्ञात है।
बीकानेर शहर में परकोटे अन्दर जो मन्दिर हैं उनका परिचय दिया जा चुका है अब परकोटे के बाहर के मन्दिरों का परिचय दिया जा रहा है।
श्री गौड़ी पार्श्वनाथजी का मन्दिर यह मन्दिर गोगादरवाजा के बाहर बगीचे में है। सं० १८८६ माघ शुदि ५ को १२०००) रुपये खर्चकर जैन संघ द्वारा श्रीजिनहर्षसूरिजी के उपदेश से प्रासादोद्धार कराने का उल्लेख शिलालेख में है। मन्दिर के मूलनायकजी सं० १७२३ में आद्यपक्षीय खरतर श्री जिनहर्षसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित है। मन्दिर की दाहिनी ओर श्री समेतशिखरजी का मन्दिर है जिसमें श्री समेतशिखरजी का विशाल पट्ट सं० १८८६ माघ शुक्ला ६ को सेठिया अमीचंद आदिने बनवाया और श्री जिनहर्षसुरिजी के करकमलों से प्रतिष्ठा करवाई। इस मन्दिर में दोनों और दीवाल पर दो चित्र बने हुए हैं, जिनमें एक चित्र मस्तयोगी ज्ञानसारजी और अमीचंदजी
"Aho Shrut Gyanam"