Book Title: Bhasha Bhaskar Arthat Hindi Bhasha ka Vyakaran
Author(s): Ethrington Padri
Publisher: Ethrington Padri

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ भाषाभास्कर ५. अयादि। ६३ ए ऐ ओ औ इन से जब कोई स्वर आगे रहता है तो क्रम से प्रय आय अव श्राव हो जाते हैं। इस विकार को अयादि कहते हैं। नीचे के चक में उदाहरण लिखे हैं ॥ उदाहरण प्रसिद्ध संधि सिद्ध संधि अय पद के याद पर्व पद के पांती का स्वर हो पंती का स्वर हो | आदि में दूसरी तो अंत्य स्वर के वदले तीसरी पांती और पर के वर्ण हो जाते हैं Nagesh | अंत में पहिली 4 aaula ने + अन = नयन ने + ऋक = नायक पा + अन = पवन इच = पवित्र ईश = गवीश पो + क = पावक भी + दनी = भाविनी | भी + उक = भावुक + + + স্বান্ত স্থাৰ श्राव ६४ यदि शब्द के अनन्तर में ए वा ओ रहे और पर शब्द के आदि में अ आवे तो अ का लोप हो जायगा। उसको लुप अकार कहते हैं और ऐसे ऽ चिन्ह से वोधित होता है। यथा सखे+अर्पयःसखेऽपय ॥ ६५ अंत्य और आद्य स्वर के संयोग से सो मंधि फल होता है वह नीचे के चक्र देखने से ज्ञात होता है। जैसे अत्य स्वर ई और आदि स्वर ए हो तो दोनों का संधि फल वहां पर देखा जहां ईकार की पांती एकार की पांती से मिलजाती है तो वह सुमता पूर्वक प्राप्त हो जायगा। इसी रीति स्वर संधि के लिखे हुए जितने नियम हैं वे सब इस चक्र में प्रत्यक्ष देख पड़ेंगे। Scanned by CamScanner

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125