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भाषाभास्कर
२३८ इन दिनों में करा और करिये ये रूप प्रचलित नहीं है पर उनके स्थान में किया और कीजिये ऐसे रूप होते हैं। कीना भी अप्रचलित हुआ है परंतु उसकी जगह में करना आता है ॥ __२३६ देना पीना लेना होना इन चारों की भूतकाल और विधि क्रिया के बनाने में जो विशेषता होती है सो प्रायः उच्चारण की सुगमता के निमित्त हे॥ ___ २४० बुद्धि में आता है कि दो एकार्थक संस्कृत धातु अर्थात या और गम से जाना क्रिया के समस्त रूप बन गये हैं या के यकार को ज आदेश करके ना चिन्ह लगाने से साधारण रूप जाना बनता है जिसकी सामान्यभूत काल की क्रिया अर्थात गया गम से निकली है ॥ .
२४१ भया यह एक क्रिया है जो भूतकाल छोड़ के और किसी काल में नहीं होती। संभव है कि संस्कृत धातु भू से निकली है वा होना धातु के सामान्यभूत के ही दोनों रूप हैं अर्थात कोई हुआ और कोई २ इसी को भया भी कहते हैं ॥ ___ २४२ कह आये हैं कि क्रिया दो प्रकार की होती है अकर्मक और सकर्मक इनको छोड़ के और भी एक प्रकार की क्रिया है जिसे प्रेरणार्थक कहते हैं इस कारण कि उस से प्रेरणा समझी जाती है ॥
प्रायः अकर्मक क्रिया से सकर्मक और सकर्मक से प्रेरणार्थक क्रिया बनती अब उनके बनाने की रीति बताते हैं॥
२४३ अकर्मक को सकर्मक बनाने की साधारण रीति यह है कि धातु के अंत्य व्यंजन से आ मिला देते हैं और अकर्मक को प्रेरणार्थक रचने के लिये वा मिलाया जाता है। यथा अकर्मक । सकर्मक।
प्रेरणार्थ क । उड़ना उड़ाना
उड़वाना गिरना गिराना
गिरवाना चढ़ना चढ़ाना
चढ़वाना दबना दबाना
दबवाना बजना
बजवाना लगना
लगाना
बनाना
लगवाना
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