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भाषाभास्कर
हे और बिशेष्य के लिङ्ग विभक्ति और वचन प्राप्त करता है । इसी रीति से दिगम्बर मृगलाचन पं.त.म्बर श्यामकर्ण दुराचार दीर्घबाहु इत्यादि जाना ॥ ___३३३ ४ द्विगु समास उसे कहते हैं जिस में पर्व पद संख्यावाचक हो उत्तर शब्द चाहे जेसा हो। यह समास बहुधा समाहार अर्थ में आता है । यथा चतुर्यग चतुर्वर्ण त्रिलोक त्रिभुवन पञ्चरत्न इत्य दि ॥
३३४ ५ द्वन्द्व समास उसे कहते हैं जहां जिन पदों से समास होता है उन सभी का अन्वय एक ही क्रिया में है।। जैसे हाथ पांव बांधे। इस उदाहरगा में हाथ और पांव दोनों का अन्वय बांधो क्रिया के साथ है। इसी रीति से पितामाता गुरुशिष्य रातदिन जाति कुटुम्ब अन्नजल लेनदेन इत्यादि जाना ॥ ___ ३३५ ६ अव्ययीभाव समास वह है जिस में अव्यय के साथ दूसरे शब्द का योग हो यह क्रियाविशेषण होता है। जैसे अतिकाल अनुरूप निर्भय यथाशक्ति प्रतिदिन इत्यादि ।
दसवां अध्य.य ।
अव्यय के विषय में। ३३६ कह चुके हैं कि अव्यय उसे कहते हैं जिस में लिङ्ग वचन वा कारक के कारण विकार नहीं होता अर्थात जिसका स्वरूप सदा एकसा रहता है। जैसे अब और वा भी फिर इत्यादि ॥
३३० अव्यय छः प्रकार के हैं १ क्रिय विशेषण २ सम्बन्धवाचक ३ उपसर्ग ४ योजक ५ विभाजक और ६ विस्मयादिबोधक ॥
१ क्रियाविशेषण । ३३८ क्रियाविशेषण उसे कहते हैं जिस से क्रिया का विशेष काल घा भाव वा राति आदि का बोध होता है वह चार प्रकार का है १ कालवाचक २ स्थानवाचक ३ भाववाचक ४ परिमाणवाचक । इन में से जा मुख्य और बोलचाल में बहुधा आते हैं उन्हें नीचे लिखते हैं।
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