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भाषाभास्कर
नवां अध्याय ॥
समास के बिषय में।
३२८ विभक्ति सहित शब्द पद कहाता है । यथा प्रत्येक पद में विभक्ति होती है। कभी दो तीन आदि पद अपनी २ विभक्ति त्याग करके मिल जाते हैं उनके मिलाने से एक शब्द बन जाता है जिस में विभक्ति का रुप नहीं परंतु उसका अर्थ रहता है। जैसे प्रेमसागर इस उदाहरण में दो शब्द हैं अर्थात प्रेम और सागर उनका परा रूप यह था कि प्रेम का सागर पर का के लाप करने से प्रेमसागर एक शब्द बन गया। इसी रीति से तीन आदि पद के योग को भी समास कहते हैं ॥
३२६ समास छः प्रकार के होते हैं अर्थात १ कर्मधारय २ तत्पुरुष ३ बहुब्रीहि ४ द्विगु ५ द्वन्द्व ६ अव्ययीभाव ॥
३३० १ कर्मधारय समास उसे कहते हैं जिस में बिशेषण का बिशेष्य के साथ सामानाधिकरण्य हो । जैसे परमात्मा महाराज सज्जन नीलकमल चन्द्रमख इत्यादि । ___३३१ २ तत्पुरुष समास वह है जिस में पूर्व पद कता छोड़ के दूसरे कारक की विभक्ति से युक्त हो और पर पद का अर्थ प्रधान होवे तत्पुरुष समास में प्रायः उत्तर पद प्रधान होता है इस कारण कि स्वतन्त्रता से उन्हीं का अन्वय क्रिया में होता है। जैसे प्रियवादी नरेश इन में वादी और ईश शब्द प्रधान हे पूर्व पद का अन्वय क्रिया में नहीं है । इसी रीति से हिमालय जन्मस्थान विद्याहीन बुद्धिरहित यज्ञस्तम्भ शरणागत ग्रामवास इत्यादि जाना ॥ ___३३२ ३ बहुब्रीहि समास उसे कहते हैं जिस में दो तीन आदि पद मिलके समस्त पद के अर्थबोध के साथ और किसी पद से सम्बन्ध रखे । जेसे नारायण चतुर्भुज । इन शब्दों का अर्थ हे जल स्थान और चार बांह परंतु इन से विष्णु ही का बोध होता है अर्थात जिसका जल स्थान है और चार बांह हे वह विष्णु समझा जाता है। बहुव्रीहि समास से जो पद सिद्ध होता है वह प्रायः बिशेषण हो जाता
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