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माषाभास्कर
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(e) छन्दों का मल यह है कि वर्णवृत्त में एक वर्ण से लेकर छब्बीस वर्ग लो के एक २ चरण होते हैं उनके प्रस्तार निकालने की यह रीति है कि एक चरण में जितने अक्षर हों उन्हें लिखकर उनके ऊपर क्रम से द्विगुणोत्तर अंक लिखता जाय फिर अन्तिम वर्ण के ऊपर जो संख्या आवे उसका दुगुणा प्रस्तार का प्रमाण बतावे । जेसे मध्या का प्रस्तार वा भेद जानना है तो sss ऐसा लिखकर द्विगुणोत्तर अंक दिया अन्त
" sss में ४ आया उसका दूना किया तो हुए ८ इसे ही मध्या का प्रस्तार जाना ॥ ___ नष्ट अर्थात प्रस्तार में चौथा भेद जानना हेवे
__ उसके निकालने की रीति । (१०) प्रत्येक वर्ण के प्रस्तार में प्रश्नकता के प्रत्येक प्रश्नविषयिक रूप जानने की यह रीति है कि जो प्रश्न का अंक सम हो मे पहिले लघु लिखे और जो विषम हो तो गुरु लिखे फिर उसका आधा करे विषम हो तो उस में जोड़ दे फिर आधा करे और सम हो तो याही अधा करे और आधा किये पर जब सम रहे तब लघु लिख दे और विषम रहे तो गुरु ऐसे ही बराबर आधा करता जाय और जब २ विषम आवे तब २ उस में एक जोड़ कर आधा किया करे और जब तक वर्ण संख्या परीन हो तब तक लिखा करे । जैसे किसी ने पूछा कि आठ वर्ण के प्रस्तार में ८६ वां सूप कैसा होता है तो ८६ सम है इसलिये पहिले १ लघु लिखा फिर आधा किया तो हुए ४३ से विषम है इस कारण १ गुरु लिखा और विषम है इस हेतु एक जोड़ दिया तो हुए ४४ आधा किया २२ हुए सो सम है इस से फिर एक लघु लिखा और आधा किया हुए ११ यह विषम है इस निमित्त एक गुरु लिखकर एक उस में जोड़ दिया तो हुए १२ आधा किया ६ हुए सो सम है इस हेतु एक लघु लिखा आधा किया ३ हुए सो विषम है इस से एक लखा और एक जोड़ दिया ४ हुए आधा किया २ रहे सम हे एक लघु लिख लिया आधा किया १ रहा सो विषम हे गुरु लिखा तो ऐसा रूप हुआ । ऽ।ऽ।ऽ।ऽ यदि प्रश्नकर्ता के उक्त अंक की पूर्णता न वे और अन्त में आकर एक ही रहजाय तो उस में एक जोड़दे और आधा करे फिर उस में १ जोड़ता जाय जब
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