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माषाभास्कर
चमी हलाहल मद भरे श्वेत श्याम रतनार । वियत मरत झुक झुक परत जेहि चितवत इक बार .
१४४ मात्रा का कुंडलिया छन्द ।। (७) इसी दोहे के चौथे चरण को पुनरुक्त करके शेष मात्रा बढ़ा देते हैं। उ० ।
टूटे नख रद केहरी वह वल गयो थकाय । आह जरा अब आइ के यह दुख दयो बढ़ाय । यह दुख दयो बढ़ाय चहं दिश जंबुक गाजें । शशक लोमरी आदि स्वतन्त्र करें सब राजै ॥ बरने दीनदयाल हरिन बिहरें सुख लूटे ।
पंगु भये मृगराज आज नख रद के टूटे ॥ अब माचा सम्बन्धी छोटे छोटे छन्द लिखे जाते हैं ॥
पांच मात्रा का छन्द । (२) आदि की एक मात्रा लघु हो और अन्त की दो मात्रा गुरु हों तो उसे ससि छन्द कहते हैं। उ० ॥ मही में । सही में । जसी से। ससी से।
प्रिया छन्द उसे कहते हैं जिसके आदि अन्त में गुरु और मध्य में लघु हो । उ० ॥ है खरो । पत्थरो। तो हिया। री प्रिया ।
तरनिजा छन्द । (६) जिस में आदि की तीन माग लघु और सब गुरु हो । ठ० उर धसा । पुरुष सो । वरनिना। तरनिजा ॥
पंचाल । (७) जिसके आदि में दो गुरु र अन्त में एक लघु हो । ७० नाचन्त । गावन्त । देताल । वेताल ॥
बीर छन्द (८) जिसके पाटि और अन्त की मात्रा ह्रस्व हो ओ मध्य की दीर्घ हों। ७० हरु पीर । अरु भीर । वरधोर । रघुबीर ॥
क मात्रा का छन्द । (e) विस में पब गुरु हैं। उ० । नब्बे रे । पंभपे । बेताली। देताली.
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