Book Title: Bhasha Bhaskar Arthat Hindi Bhasha ka Vyakaran
Author(s): Ethrington Padri
Publisher: Ethrington Padri

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Page 104
________________ भाषाभास्कर बारहवां अध्याय ॥ अथ छन्दोनिरूपण । (१) छन्द का लक्षण यह है कि जिस में मात्रा वा वर्ण की गिनती रहती है और प्रायः उस में चार पाद होते हैं ॥ (२) वर्ण दो प्रकार के होते हैं अर्थात गुरु और लघु एक माधिक को लघु द्विमात्रिक को गुरु कहते हैं ॥ (३) अनुस्वार और विसर्ग करके युक्त जो लघु है उसको गुरु कहते हे और पद के अन्त में और संयोग के पूर्व में रहनेवाले को भी गुरु बोलते हैं और स्वरूप ठसका वक्र लिखा जाता है जैसा कि ऽ यह चिन्ह हे और लघु का स्वरूप एक सीधी पाई जैसे । यह है ॥ (४) वर्णवृत्तों में आठ गण होते हैं और प्रत्येक गमा तीन २ वर्षों का माना गया है १ मगण २ नगण ३ भगण ४ यगण ५ जगण ६ रगण ० सगण ८ तगण ॥ (५) तीन गुरु का मगण होता है और तीन लघु का नगण होता हे और आदिगुरु भगण और आदिलघु यगण मध्यगुरु जगण मध्यलघु रगण और अन्तगुरु सगण और अन्तलघु तगण कहाते हैं ॥ इन में मगण नगण भगण और यगण ये चारों छन्द के आदि में शुभ हैं और शेष चारों अशुभ । जैसे मगण = sss] नगण = । । । .. ये च.रों शुभ है भगण = ।। यगण = । ।) जगण = । । रगया = s। ये चारों अशुभ है सगया तगण = ss Scanned by CamScanner

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