________________
माषाभास्कर
।
- ३६ यद्यपि इस क्रिया का प्रयोग हिन्दी भाषा में बहुत नहीं पाता तथापि नहीं के साथ इसे बहुत बोलते हैं और इस से केवल भाव अर्थात व्यापार का बोध होला है ॥
३६० यद्यपि ऊपर के लिखे हुए नियमों के पढ़ने से कोई ऐसी विशेष बात नहीं बच रहती जिसके निमित्त कुछ लिखना पड़े तथापि वाक्यविन्यास में ये तीन बातें मुख्य हैं आकांक्षा योग्यता और आसत्ति जिनके बिन जाने वाक्य बनाने में कठिनता होती है । __३६८ १ एक पद की दूसरे पद के साथ अन्वय के लिये जे। चाह रहती है उसे आकांक्षा कहते हैं। जैसे गेया घोड़ा हाथी पुरुष यह वाक्य नहीं कहाता है क्योंकि आकांक्षा नहीं है परंतु चरती दौड़ता नहाता सीता इन क्रियाओं के लगाने से वाक्य बन जाता है इसलिये कि अन्वय के लिये इनकी चाह अपेक्षित है ॥
३६६ २ परस्पर अन्वित होने में अर्थ बोध के औचित्य को योग्यता कहते हैं। जैसे यदि कई कहे कि आग से सींचते हैं तो यह भी वाक्य न होगा क्योंकि सींचना क्रिया की योग्यता आग के साथ बाधित होती है। इस कारण जल से सींचता है यह वाक्य कहाता है ॥ - ४०० ३ पदों के सान्निध्य को प्रत्यासत्ति कहते हैं अर्थात जिस पद का अन्वय जिस शब्द के साथ अपेक्षित हो उनके बीच में बहुत से काल का व्यवधान न पड़ने पावे नहीं तो भार के बोले हुए कर्तपद के साथ सांझ के उच्चरित क्रिया पद का अन्वय हो जायगा । जैसे रामदास भार चार मार पीट लेन देन आग पानी घी चीनी इसको कहके सांझ को आओ हुआ पकड़ा होती है करते हैं ले जाओ ऐसा कहा यह वाक्य न कहावेगा।
॥ इति वाक्यविन्यास ॥
Scanned by CamScanner