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भाषाभास्कर
३१० प्राधार तीन प्रकार का हे ओपश्लेषिक वैपयिक और अभिव्यापक । औपश्लेषिक उस आधार को कहते हैं जिसके किसी अवर ब से संये ग हो । जैसे वह चटाई पर बैठता है वह बटनाही में रांधता है। वैषयिक उस आधार का नाम है जिस से विषय का बोध हो । जेसे मोक्ष में उसकी इच्छा लगी है अर्थात उसकी इच्छा का विषय मोक्ष है । और अभिव्यापक वह आधार है जिस में आधेय संपूर्ण रूप से व्याप्त हो । जैसे आत्मा सब में व्याप्त है बन से दर वा निकट * ॥
३१८ निर्धारण अर्थ में अधिकरण होता है। जहां अनेक के मध्य में एक का निश्चय होता है वहां निधारण जाना । जैसे पशुओं में हाथी बड़ा है पत्थरों में हीरा बहुमल्य है ॥ ___३१६ हेतु के प्रकाश करने में सनम और पञ्चम दोनों कारक होते है । जैसे ऐसा करो जिस में वह कार्य सिद्ध हो वा ऐसा कहा जिस से प्रयोजन सिद्ध हो ॥
आठवां अध्याय ॥
तद्धित प्रकरण । ३२० तद्धित उसे कहते हैं जिस से संज्ञा के अंत में प्रत्ययों के लगाने से अनेक शब्द बनते हैं । जो हिन्दी में व्यवहूत प्रत्यय हैं उन्हें नीचे लिखते हैं ।
३२१ तद्धित के प्रत्यय से अपत्यवाचक कर्तवाचक भाववाचक ऊनपाचक और गुणवाचक संज्ञा उत्पन्न होती हैं । जैसे
३२२ १ अपत्यवाचक संज्ञा नामवाचक से निकलती हैं । नामवाचका के पहिले स्वर को वृद्ध करने से अथवा ई प्रत्यय होने से जैसे शिव खे शेव विष्णु से वैष्णव गोतम से गौतम मनु से मानव वशिष्ठ से वा.शष्ठ महानन्द से महानन्दी रामानन्द से रामानन्दी हुआ है ॥ __३२३ २ कर्तवाचक संज्ञा उसे कहते हैं जिस से किसी क्रिया के ध्यापार का कती समझा जाय संज्ञा से हाग वाला और इया इन प्रत्ययों
* तत्वकौमुदी मू० ५६६ ।
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