Book Title: Bhasha Bhaskar Arthat Hindi Bhasha ka Vyakaran
Author(s): Ethrington Padri
Publisher: Ethrington Padri

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Page 82
________________ भाषाभास्कर २०६ कहीं कहीं क्रिया के साधारण रूप के ना का लोप करके वट • . या हट प्रत्यय करने से भाववाचक संज्ञा होती है। जैसे बनावट रंगाघट सिखावट चिल्लाहट झंझनाहट इत्यादि ॥ ४ करणवाचक । २०० करणवाचक संज्ञा उसे कहते हैं जिसके कहने से ज्ञात होता हे कि किसके द्वारा कती व्यापार को सिद्ध करता है। उसके बनाने की यह रीति है कि क्रिया के साधारण रूप के अंत्य आ को ई आदेश कर देते हैं। जैसे ओढ़नी कतरनी कुरेलनी घोटनी ढंकनी खोदनी इत्यादि । २०८ कहीं कहीं क्रिया से धातु से आ लगा देते हैं । जैसे घेरा फेरा मला आदि। कोई कोई धातु हैं जिन से ना प्रत्यय करने से करण वाचक संज्ञा हो जाती है। जैसे बेलना इत्यादि ॥ ५ क्रियाद्योतक । २०६ क्रियाद्योतक संज्ञा उसे कहते हैं जो संज्ञा का बिशेषण होके निरन्तर क्रिया को जनावे उसके बनाने की यह रीति है कि क्रिया के साधारण रूप के अंत्य ना को ता करने से क्रियाद्योतक संज्ञा हो जाती हे अथवा उसके आगे हुआ लगा देते हैं। जैसे देखता वा देखता हुआ बोलता वा बोलता हुआ मारता वा मारता हुआ इत्यादि । सातवां अध्याय अथ कारक प्रकरण । २८० व्याकरण के उस भाग का कारक कहते हैं जिस में पदों की अवस्थाओं का वर्णन होता है ॥ प्रथम अर्थात का कारक । २८१ प्रातिपदिकार्थ अर्थात संज्ञा के अर्थ की उपस्थिति जहां नियम पूर्वक रहती है वहां प्रथम अर्थात का कारक होता है। जैसे बुद्धि देव ऊंचा नीचा आदि ॥ २८२ जहां पर लिङ्ग वा परिमाण अथवा संख्या का प्रकाश करना अपेक्षित रहता है वहां प्रथम कारक बोला जाता है। जैसे लड़का लड़की आध पाव घी आध सेर चीनी एक दो बहुत इत्यादि । Scanned by CamScanner

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