Book Title: Bhasha Bhaskar Arthat Hindi Bhasha ka Vyakaran
Author(s): Ethrington Padri
Publisher: Ethrington Padri

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Page 84
________________ भाषाभास्कर 02 ३८८ अपादान आदि कारक की विवक्षा जब नहीं होती और कर्म नहीं रहता है तो वहां अपादान आदि कारकों के स्थान में मुख्य कर्म को छोड़कर द्वितीय कारक हो जाता है । जैसे आज मेरी गैया का कौन दुहेगा अर्थ यह है कि मेरी गेया से आज दूध को कौन दुहेगा || २८६ कर्म कारक का चिन्ह को बहुधा लोप होता है परंतु उसके लेप करने की कोई दृढ़ रीति नहीं है । कोई २ वैयाकरण समझते हैं कि उसका लाना और न लाना विवक्षा के आधीन है परंतु औरों की बुद्धि में सामान्य वर्णन वा बिशेष वर्णन मानकर उसका लोप करना वा उसे लाना चाहिये । जैसे वह तुलसीदास के रामायण को पढ़ता है यहां विशेष रामायण अर्थात तुलसीकृत रामायण की चर्चा है वाल्मीकी की नहीं ॥ २६० श्रप्राणीवाचक संज्ञा का कर्म कारक हो तो प्रायः चिन्ह रहित होगा। जैसे मैं चिट्ठी लिखता हूं तुम जाके काम करो वह फल तोड़ता है इत्यादि । व्यक्तिवाचक अधिकारवाचक और व्यापारकर्तृवाचक संज्ञा के कर्म में प्रायः के लगाना चाहिये। जैसे मोहनलाल को बुलाओ चौधरी को भेज देना वह अपने दास को मारता है इत्यादि ॥ Scanned by CamScanner २६१ यदि एक ही वाक्य में कर्म कारक और सम्प्रदान कारक भी आवें तो उच्चारण की सुगमता के निमित्त प्राय: कर्म के चिन्ह का लेप होता है | जैसे दरिद्रों को दान दे। ॥ तृतीय अर्थात करण कारक | २६२ जिसके द्वारा कती क्रिया को सिद्ध करता है उसे करण कहते हैं करण में तृतीय कारक होता है । जैसे लेखनी से लिखते हैं पव से चलते हैं छूरी से आम को काटते हैं खड्ग से शत्रुओं का मारते हैं ॥ २६३ हेतु द्वारा और कारण इनके योग में तृतीय कारक होता है । जेसे इस हेतु से मैं वहां नहीं गया आलस्य के हेतु से वह समय पर न पहुंचा वह अपनी अज्ञानता के कारण उसे समझ नहीं सकता कारण से उसका निवारण में नहीं कर सकता ज्ञान के द्वारा मोच होता मन्त्री के द्वारा राजा से भेंट हुई इस हे

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