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भाषाभास्कर
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___२६४ विशेषता यह है कि जब हेत वा कारण के साथ योग होता हे तो कारक के चिन्ह का लोप वक्ता की इच्छा के आधीन रहता हे परंतु जब द्वारा शब्द का संयोग रहे तो अवश्य कारक के चिन्ह का लोप करना उचित हे॥ __२६५ लिया करने की रीति वा प्रकार के बताने में करण कारक आता है। जैसे उसने उन पर क्रोध से दुष्ट की वह सार शक्ति से यत्न करता है जो कुछ तुम करो सो अन्तःकरण से करो इस रीति इस प्रकार से । __२६६ मल्यवाचक संज्ञा में प्रायः करण कारक होता है। जैसे कल्याण कञ्चन से मोल नहीं सकते अनाज किस भाव से बेचते हैं दो सहन रुपैयों से हाधी माल लिया ॥
२६० जिस से कोई वस्तु अथवा व्यक्ति उत्पन्न होवे उसको करण कारक कहते हैं। जैसे कपास ऊन आदि से वस्त्र बनता है दूध से घी उत्पन्न होता है ज्ञान से सामर्थ्य प्राप्त होता है आप से आप कुछ नहीं हो सकता है ॥
२६८ किसी क्रिया का कती जब उक्त नहीं रहता तो उस कती में तृतीय कारक होता है। जैसे मुझ से तड़के नहीं उठा जाता । यदि क्रिया सकर्मक हो तो उसके कर्म में प्रथम कारक होगा। जेसे तुम से यह नहीं मारा जायगा । यदि क्रिया द्विकर्मक हेवे तो उसके मुख्य कर्म में प्र यम कारक होगा परंतु गौण कर्म जो सम्प्रदान कारक के रूप से आता हे उसे द्वितीय कारक होगा। जैसे मुझ से पैसे उसको नहीं दिये जाते । ___२६: इस कारक के चिन्ह का लेप अनेक स्थानों में होता है। जेसे न आंखों देखा न कानों सुना मेरे हाथ चिट्ठी भेजता है ।
चतुर्थ अर्थात सम्प्रदान कारक । ३०० जिसके लिये देते हैं उसे सम्प्रदान कहते हैं । सम्प्रदान में चतुर्थ कारक होता है। जैसे दरिद्रों को धन दे। हमके। पीने का जल दे। इत्यादि ॥
३०१ जिस लिये वा जिसके निमित्त कुछ किया जाता है उसके प्रकाश करने में सम्प्रदान कारक होता है। जैसे भोजन बनाने को
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