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भाषाभास्कर
११४ हिन्दी भाषा में कारक आठ होते हैं अर्यात १ कती
५ अपादान २ कर्म
'६ सम्बन्ध ३ करण
• अधिकरण ४ सम्प्रदान
८ सम्बोधन १ का कारक उसे कहते हैं जो क्रिया के व्यापार को करे । भाषा में उसका कोई विशेष चिन्ह नहीं है परंतु सकर्मक क्रिया के कती के आगे अपर्ण भूत को छोड़के शेष भतकालों में ने आता है। जैसे लड़का पढ़ता है पण्डित पढ़ाता था पिता ने सिखाया है * ॥
२ कर्म उसे कहते हैं जिसमें क्रिया का फल रहता है उसका चिन्ह को है। जेसे में पुस्तक को देखता हूं उसने पण्डित को बुलाया ॥
३ करण उसे कहते हैं जिसके द्वारा की व्यापार को सिद्ध करे उसका चिन्ह से है। जैसे हाथ से उठाता है पांव से चलता है।
४ सम्पदान वह कहाता है जिसके लिये की व्यापार को करता हे उसका चिन्ह को है। जैसे गुरु ने शिष्य को पाथी दी ॥
५ क्रिया के विभाग की अवधि को अपादान कहते हैं उसका चिन्ह से है। जेसे वृक्ष से पत्ते गिरते हैं वह मनुष्य लोटे से जल लेता है ॥
६ सम्बन्ध कारक का लक्षण यह है जिस से स्वत्व सम्बन्ध आदि समझा जाय उसके चिन्ह ये हैं का मे की। जैसे राना का घोड़ा प्रजा के घर मन की शक्ति ।
० कती और कर्म के द्वारा जो क्रिया का अाधार उसे अधिकरण कहते हैं उसके चिन्ह में पे पर हैं। जैसे वह अपने घर में रहता है वे आसन पर बैठते हैं ॥ ___ * सात सकर्मक क्रिया हैं अर्थात बकना बोलना भूलना जनना लाना लेजाना और खाजाना जिनके साथ भतकाल में कती के आगे ने नहीं आता है । लाना (ले+आना=लाना) लेजाना और खाजाना संयुक्त क्रिया है उनका पूर्वार्द्ध सकर्मक और उत्तरार्द्ध अकर्मक है इस से यह नियम निकलता है कि जब संयुक्त सकर्मक क्रिया का उत्तरार्द्ध अकर्मक होता हे तब उस क्रिया के भतकाल में कती के साथ ने चिन्ह नहीं होता
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