Book Title: Bhasha Bhaskar Arthat Hindi Bhasha ka Vyakaran
Author(s): Ethrington Padri
Publisher: Ethrington Padri

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Page 41
________________ भाषाभास्कर कर्म १४६ व्यक्तिवाचक आकारान्त पुल्लिंग दादा शब्द । कारक । एकबचन । कती दादा वा दादा ने अथवा दादा वा दादे ने दादा को दादे को दादे से दादा से करण सम्प्रदान दादा को दादे को अपादान दादे से दादा से सम्बन्ध दादा का-के-की दादे का-के-की अधिकरण दादा में दादे में सम्बोधन हे दादा हे दादे॥ बहुबचन । कती दादा वा दादाओं ने अथवा दादे वा दादों ने कर्म दादाओं को दादां को करण दादाओं से दादों से सम्प्रदान दादाओं का दादां को अपादान दादाओं से दादों से सम्बन्ध दादाओं का-के-की दादों का-के-की अधिकरण हे दादाओ __ हे दादा ॥ गुणवाचक संज्ञा के विषय में । १४० कह आये हैं कि गुणवाचक संज्ञा बिभेदक है अर्थात् दूसरी संज्ञा को विशेषता का प्रकाश करती है इसलिये वह विशेषण कहाती है और जिसकी विशेषता को जनाती है वह विशेष्य कहाता है। जैसे निर्मल जल इस में निर्मल विशेषण और जल विशेष्य है ऐसा ही सर्वच जाना ॥ १४८ विशेषण के लिङ्ग बचन और कारक विशेष्य निघ्न है अर्थात विशेष्य को जो लिङ्ग आदि हो वेही लिङ्ग आदि विशेषण के होंगे ॥ ___१४६ हिन्दी में अकारान्त को छोड़कर गुणवाचक में लिङ्ग बचन वा कारक के कारण कुछ बिकार नहीं होता । जैसे सुन्दर पुरुष सुन्दर स्त्री मुन्दर लड़के कोमल पुष्प कोमल पत्ते कोमल डालियों पर ॥ Scanned by CamScanner

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