Book Title: Bhasha Bhaskar Arthat Hindi Bhasha ka Vyakaran
Author(s): Ethrington Padri
Publisher: Ethrington Padri

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Page 50
________________ माषाभास्कर ४५ सम्बन्ध तिस का-के-की तिन का-के-की अधिकरण तिस में तिन में तिन्हेां में ॥ १८२ चेत रखना चाहिये कि निश्चयवाचक प्रश्नवाचक और सम्बन्धवाचक सर्वनामों में कता को छोड़ के शेष कारकों के बहुवचन में सानुनासिक हों विभक्ति के पर्व कोई २ विकल्प से लगा देते हैं। जैसे इनने वा इन्हों ने जिनका वा जिन्हें| का बोलते हैं। परंतु कोई २ वैयाकरण कहते हैं कि जिस रूप में ओं वा हों आवे वह सदा बहुत्व बताने के निमित्त होता है। जैसे हम को तुम्हों को अर्थात हम लोगों को तुम लोगों को इत्यादि। और अन्य रूप हमको तुमको आदि केवल आदरार्थ बहुवचन में आते है ॥ __ १८३ - इस उस किस जिस तिस सर्वनामों के स को तना आदेश करने से ये परिमाणवाचक शब्द अर्थात इतना उतना कितना जितना और तितना बनाये जाते हैं और उन्हीं सर्वनाम के साथ सामानतासचक सा (स सी) के लगाने से ये प्रकारवाचक शब्द भी अर्थात ऐसा कैसा जैसा तैसा और वैसा हुए हैं। इस+ सा= ऐसा किस + सा= कैसा जिस+सा = सा और तिस + सा= तैसा । यह पांचों गुणवाचक की रीति पर आते हैं और उनके विकार होने का नियम लिङ्ग वचन के कारण वही है जो आकारान्त गुणवाचक के विषय बताया गया है ॥ १८४ ऊपर के लिखे हुए सर्वनामों को छोड़ के कितने एक शब्द और भी आते हैं जो इन्हीं सर्वनामों के तुल्य होते हैं। जैसे एक दो दोनों और सब अन्य कई के आदि । इति सर्वनाम प्रकरण ॥ पांचवां अध्याय। क्रिया के विषय में । . १८५ कह पाये हैं कि क्रिया उसे कहते हैं जिसका मुख्य अर्थ करना है वह काल पुरुष और वचन से सम्बन्ध रखती है ॥ Scanned by CamScanner

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