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भाषाभास्कर
१५० आकारान्त विशेषण में विकार होने के तीन नियम होते हैं जिन्हें चेत रखना चाहिये । यथा
१ पुल्लिङ्ग विशेष्य का आकारान्त विशेषण हो तो कती और कर्म के एकवचन में जब उनका चिन्ह नहीं रहता तब विशेषण का कुछ विकार नहीं होता। जैसे ऊंचा पेड़ ऊंचा पहाड़ देखा पीला वस्त्र पीला वस्त्र दो ॥
२ पुल्लिङ्ग विशेष्य का आकारान्त विशेषण हो तो शेष कारकों के एक वचन में और बहुवचन में विशेषण के अन्त्य आ को ए हो जाता है। जेसे बडे घर का स्वामी आया है वे ऊंचे पर्वत पर चढ़ गये हैं सकरे फाटक से कैसे जाऊं अच्छे लड़के भले दासों के लिये ॥
३ स्त्रीलिङ्ग विशेष्य का आकारान्त विशेषण हो तो सब कारकों के दोनों वचनों में विशेषण के अन्त्य आ को ई आदेश कर देते हैं। जैसे वह गोरी लड़की है लम्बी रस्सी लाओ हरी घास में गया है मीठी बातें बोलता है छोटी गैयाओं को दो ॥ ___१५१ यदि संख्यावाचक विशेषण हो और अवधारण की विवक्षा रहे
तो उसके अन्त में ओ कहीं सानुनासिक और कहीं निरनुनासिक कर देते हैं। जैसे दोनों जावेंगे चारो लड़के अच्छे हैं। यदि समुदाय से दो तीन श्रादि व्यक्ति ली जाये तो दो तीन आदि इन रूपों को विभक्ति जोड़ते हैं। जैसे दो को तीन से चार में ॥
१५२ एक बस्तु में दूसरी से वा उस जाति की सब बस्तों से गुण की अधिकाई वा न्यनता प्रकाश करने के लिये यह रीति होती है कि विशेषण में कुछ विकार नहीं होता विशेष्य का का कारक आता है और जिस संज्ञा से उपमा दी जाती है उसका अपादान कारक होता है । जैसे यह उस से अच्छा है यमुना गंगा से छोटी है लड़की लड़के से सुन्दर है यह सब से अच्छा है हिमालय सब पर्वतों से ऊंचा है।
यह हिन्दी में साधारण रीति है पर कहीं २ संस्कृत की रीति के अनुप्तार तर और तम ये प्रत्यय विशेषण को जोड़ते हैं। जैसे कोमल कोमलतर कोमलतम प्रिय प्रियतर प्रियतम शिष्ट शिष्टतर शिष्टतम आदि ॥
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