Book Title: Bhasha Bhaskar Arthat Hindi Bhasha ka Vyakaran
Author(s): Ethrington Padri
Publisher: Ethrington Padri

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Page 33
________________ भाषाभास्कर १२० पहिले भाग में वे सब संज्ञा आती है जिनके एकवन और बहुवचन में विभक्ति के आने से संज्ञा का कुछ विकार नहीं होता है परंतु बहुवचन में कर्ता और सम्बोधन को छोड़कर शेष कारकों में शब्द के धागे ओ लगाकर विभक्ति लाते हैं । १२ दूसरे भाग की वे सब संज्ञा हैं जिनके एकवचन में और कती के बहुवचन में विभक्ति के कारण कुछ बदलता नहीं पर बहुवचन के कर्म आदि कारकों में वा बहुवचन के चिन्ह ओं का वा अंत्य दीर्य स्वर का विकार होता है। १२२ तीसरे भाग में जो संज्ञा आती हैं उनका यह लक्षण है कि केवल उन्हीं में का कारक के बहुवचन का विकार होता हे॥ १३ चोये भाग में वे सब संज्ञा आती हैं जिनके प्रत्येक कारक के दोनों वचनों में विभक्ति के आने से संज्ञा कुछ बदल जाती है । पहिला भाग। १२४ इस भाग में हस्व उकारान्त एकारान्त आकारान्त और हलन्त पलिङ्ग शब्द होते हैं। विभक्ति के आने से उनका कुछ विकार नहीं होता परंतु कता और सम्बोधन के बहुवचन को छोड़कर शेष कारकों में शब्द से आगे ओं लगाकर विभक्ति लाते हैं। उदाहरण नीचे देते हैं। यथा १२५ ह्रस्व उकारान्त पुल्लिङ्ग वन्धु शब्द । कारक । एकवचन । बहुवचन । का बन्धु वा वन्धु ने* बन्धु वा बन्धुओं ने* * चेत रखना चाहिये कि जिस कत्ता कारक के साथ ने चिन्ह होता हे वह अपर्णभूत को छोड़के केवल सकर्मक धातु की भूतकालिक क्रिया के साथ आ सकता है । और यदि कर्म कारक का चिन्ह लुप्त हो तो क्रिया के लिङ्ग वजन कर्म के अनुसार होंगे जैसे पण्डित ने पोथी लिखी महाराज ने अपने घोड़े भेजे । परंतु जो कर्म अपने चिन्ह को के साथ आवे तो क्रिया सामान्य पुल्लिङ्ग अन्य पुरुष एकवचन में होता है। जैसे मेने रामायण को पढ़ा है रानी ने सहेलियों को बुलाया इत्यादि । इस प्रयोग का वर्णन आगे लिखा जायगा ॥ Scanned by CamScanner

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