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भाषाभास्कर
-०१ जब त वाद से परे चवर्ग अथवा टवर्ग का प्रथम वा द्वितीय वर्ण हो तो त वा द के स्थान में च वा ट होता है। और चवगं वा टवर्ग के तृतीय वा चतर्थ वर्ण के परे रहते त वा द को न वा ड हो जाता है परंतु त वा द से जब श पर रहता है तो श को छ र त वा द को च होता है और लकार के परे रहते त वा द को ल हो जाता है। ऐसे ही त वा द से परे जब ह रहता है तो ह वा द को द होकर हकार को धकार होता है। जैसे नीचे चक्र में लिखा है ॥
उदाहरण
असिद्ध संधि | सिद्ध संधि
यदि पर्व पद के
अंत में पहिली N | पांती का वर्ण होवे
और पर पद के पांती का वर्ण हावे तो दोनों मिलकर तीसरी पांती के
वर्ण होंगे punaaNagaal आदि में दूसरी
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उत् + चारण =उच्चारण सत् + चिदानन्द =सच्चिदानन्द सत् + जाति =सज्जाति उत् + ज्वल =उज्ज्व ल उत् + छिन्न उच्छिन्न तत् + टीका =तट्टीका उत् + लङ्घन ___=उल्लङ्कन सत् + शास्त्र =सच्छास्त्र उत् + शिष्ट =उच्छिष्ण उत् + हार उद्धार तत् + हित =तद्धित
EN
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०२ यदि त से परे ग घ द ध ब भ य र व अथवा स्वर वर्ण रहे तो त के स्थान में द होगा। और जो द से परे इन में से कोई वर्ण पाये तो कुछ विकार न होगा । यथा
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