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भाषाभास्कर
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न वाक्य में नीरसता होती है। सर्वनामों के रूपों में लिङ्ग के कारण कुछ विकार नहीं होता है जिन संज्ञाओं के स्थान में वे आते हैं उनके अनु. सार सर्वनामों का लिङ्ग समझा जाता है। सर्वनाम संज्ञा के दो धर्म है एक तो पुरुषवाचक जेसे में तू वह और दसरा गणीभूत जैसे कोन कोई पान और इत्यादि ।
लिङ्ग के विषय में ॥ ६० हिन्दी भाषा में दो ही लिङ्ग होते हैं एक पुल्लिङ्ग दूसरा स्त्रीलिङ्ग । संस्कृत और आन भाषात्रों में तीन लिङ्ग होते हैं परंतु हिन्दी में नपुंसक लिङ्ग नहीं है यहां सब सजीव और निर्जीव पदार्थों के लिङ्ग व्यवहार के अनुसार पुल्लिङ्ग वा स्त्रीलिङ्ग में समाप्त हो जाते हैं ॥
८ उन प्राणीवाचक शब्दों के लिङ्ग जान्ने में कुछ कठिनता नहीं पड़ती जिनके अर्थ से मिथुन अर्थात जाड़े का ज्ञान होता है क्योंकि पुरुषबोधक संज्ञा को पुल्लिङ्ग और स्त्रीबोधक संज्ञा को स्त्रीलिङ्ग कहते हैं । जेसे नर लड़का घोड़ा हाथी इत्यादि पुल्लिङ्ग और नारी लड़की घोड़ी हथिनी इत्यादि स्त्रीलिङ्ग कहाती हैं ॥ ___EE हिन्दी के सब शब्दों का अधिक भाग मंस्कृत से निकला हुआ है और संस्कृत में जिन शब्दों का पुल्लिङ्ग वा नपुंसकलिङ्ग होता है वे सब हिन्दी में प्रायः पुल्लिङ्ग समझे जाते हैं। और जो शब्द संस्कृत में स्त्रीलिङ्ग होते हैं वे हिन्दी में भी प्रायः स्त्रीलिङ्ग रहते हैं। जैसे देश सूर्य जल रव दुःख इन में से जल रत्न दुःख संस्कृत में नपुंसकलिङ्ग हैं परंतु हिन्दी में पुल्लिङ्ग हैं और भूमि बुद्धि सभा लज्जा संस्कृत में और हिन्दी में भी स्त्रीलिङ्ग हैं॥
१०० हिन्दी में जिन अप्राणीवाचक शब्दों के अंत में अकार वा श्राकार रहता है और उनका उपान्त्य वर्ग त नहीं होता है वे प्रायः पुल्लिङ्ग समझे जाते हैं । नेमे वर्णन ज्ञान पाप बच्चा कपड़ा पंखा ॥ __१०१ जिन निर्जीव शब्दों के अंत में ई वा त होता है वे प्रायः स्त्रीलिङ्ग हैं । जैसे मोरी बोली चिटी बात रात इत्यादि ॥
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