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भाषाभास्कर
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८५ किया का लक्षण यह है कि उसका मुख्य अर्थ करना है और वह काल पुरुष और बचन से सम्बन्ध नित्य रखती है । जेसे मारा था जाते हैं पढ़ सकेंगी इत्यादि ॥
८६ अव्यय उसे कहते हैं जिसमें लिङ्ग संख्या और कारक न हो अर्थात इनके कारण जिसके स्वरूप में कुछ विकार न दिखाई देवे । जैसे परंतु यद्यपि तथापि फिर जब तव कब इत्यादि ॥
८७ पहिले संज्ञा तीन प्रकार की होती है अर्थात रूढ़ि योगिक और योगरूढ़ि ॥
८८ रुढि संज्ञा उसे कहते हैं जिसका कोई खण्ड सार्थक न हो सके । जैसे घोड़ा कोड़ा हाथी पोथी इत्यादि । घोड़ा शब्द में एक खण्ड घो और दूसरा डा हुआ परंतु दोनां निरर्थक हे इसलिये यह संज्ञा दि कहाती है॥
E जो दो शब्दों के योग से बनी हो अथवा शब्द और प्रत्यय मिलकर बने उसे यौगिक संज्ञा कहते हैं। जैसे बालबोध कालज्ञान नरमेध जीवधारी थलचारी बोलनेहारा कारक जापक पाठक इत्यादि ।
१० योगकुढि संज्ञा वह कहाती है जो स्वरुप में यौगिक संज्ञा के समान होती पर अपने अर्थ में इतनी विशेषता रखती है कि अवय. वार्थ को छोड़ संकेतितार्थ का प्रकाश करती है। जैसे पीताम्बर पङज गिरिधारी लम्बोदर हनुमान गणेश इत्यादि ॥ ___ तात्पर्य यह है कि पीत शब्द का अर्थ पीला है और अम्बर शब्द का अर्थ कपड़ा है परंतु जितने पीत वस्त्र पहिनेवाले हैं उन्हें छोड़कर विष्णु रूपी विशेष अर्थ का प्रकाश करता है इसलिये यह पद योगरूढ़ि है।
१ फिर संज्ञा के पांच भेद और भी हैं। जातिवाचक व्यक्तिवाचक गुणवाचक भाववाचक और सर्वनाम ॥
१२ जातिवाचक संज्ञा उसे कहते हैं जिसके अर्थ से वैसे रूप भर का ज्ञान हो। जैसे मनुष्य स्त्री घोड़ा बैल वृक्ष पत्थर पायी कपड़ा आदि। कहा है कि मनुष्य अमर है इस वाक्य में मनुष्य शब्द जातिवाचक है
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