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स्तवनावली।
स्तवन पंदरमुं।
॥ राग आइ वसंत ॥ आदि जिनंद दयाल हो, मेरी लागी बगनवा ॥ टेक ॥ विमलाचल मंमन उख खान, मंगन धर्म विसाल हो ॥ मे ॥ १॥ विषधर मोर चोर कामिजन, दरीसन कर निहाल हो । मे ॥२॥ हुं अनाथ तूं त्रिजुवन नाथा, कर मेरी संजाल हो ॥ मे ॥ ३॥ आतम आनंदकंदके दाता, त्राता परम कृपाल हो ॥ मे ॥४॥
स्तवन सोलमुं।
॥ राग ठुमरी ॥ चलो सजनी जिन वंदन को, विमलाचल पाप निकंदनको ॥ टेक ॥ दरस करत सव पातक जावे. तिर्यग् नरक गति बिंदन को ॥ च ॥ १॥ पूरनवी अन्नव्य न देखे, चूर करण सव धंदनको ॥ च०॥॥ आतम रसन्नर आदि जिनंदा, मूरनसे नव वंधनको ॥ च ॥३॥
॥ इति श्री ऋपभ जिन स्तवनानि संपूर्णानि ।।