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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
प्रीतमी । में देखी हो ते निसनेह ॥ ० ॥ ५ ॥ मेरो कोई न जगतमें। तुम बोगी हो जग में जगदीस । प्रीत करूं व कोनसू । तूं त्राता हो मोने विसवावी ॥ अ० ॥६॥ आतमराम तूं माहरो । सिर सेहरो हो हियमेनो हार । दीन दयाल किरपा करो | मुऊ वेगाहो अब पार उतारो
॥ अ० ॥ ७ ॥
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|| श्री धरमनाथ जिन स्तवन ॥ ॥ माला किहां छैरे, ए देशी ॥
जविक जन वंदोरे धरम जिनेसर धरम स्वरूपी | जिनंद मोरा । परम धरम परगासै रे । परमुख अंजन जवि मन रंजन ॥ जि० ॥ द्वादस परषदा पासे रे । जविक जन वंदो रे । धरम जिनेसर वंदो परमसुख कंदो रे ॥ ज० ॥ १ ॥ धरम धरम सहु जन मुख जाषै ॥ जि० ॥ मरम न जाने कोई रे । धरम जिनंद सरण जिन लीना जि० ॥ धरम पिठाणे सोई रे ॥ ज० ॥ २ ॥ दख जाव स्वढ्या मन आणो ॥ जि० ॥ पर सरूप अनुबंध रे । व्यवहारी निहचे गिन लीजो | जिणा पालो करम न बंधारे ॥ ज० ॥ ३ ॥ जयना सर्व