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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत--
अथ दूसरी अशरण नावना।
॥ राग मराठी ॥ अपने पदको तज कर चेतन, परमें फसना
ना चाश्ये ॥ ए देशी॥ निज स्वरूप जाने बिन चेतन, जगमें नहीं को है सरना । क्यों नरम नूलाना, जान निज रूप आनंद रस घट जरना ॥ निज ॥ १ ॥ इंड उपेंड आदि सब राने, बिना सरन यम मुख परना । अति रोग नराये, जीव की कौन करे जगमें करुणा ॥ निज ॥ ५ ॥ मात पिता स्वसु जात पुत्रके, देखत ही यम ले चलना । मुख वाय रहेंगे, सरणा नहीं तिननें को करना ॥ निज ॥ ३॥ मृतक देखी सोच करे मन, अपना सोच नहीं करना । दृढ मूरख तुं रे, करम की गतिसे सहु जगमें फीरना ॥ निज ॥४ ॥ जगवन मुख दावानल दहके, हिरन पोतको को सरना । तिम सरण विना तुं, मोह से पाप पिंकों क्यों जरना ॥ निज ॥ ५ ॥ हरि विरंचि ईश नहीं जाते, आपही तिनको क्यों मरना । जिन वचन हि साचे, जीवना जितना ही आयु धरना ॥ निजण ॥ ६॥ आत