Book Title: Atmanand Stavanavali
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Babu Saremal Surana
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चाविशी ।
२५९ जाचें मा, माथे प्रेमविलास ॥ तूर दिवाजे गाजें, गजे चामर कंति । हरे प्रक्षु आव्या परणवा, नवनवा उत्सव हंति ॥ ४ ॥ गोखे चढी मुख देखे, राजीमती नर प्रेम । राग अमीरस वर, हर पेखी नेम ॥ मन जाणे ए टाणे, जो मुज परणे एह । संनारे तो रंना, सवल अचंना तेह ।। ५ ।। पशुअ पुकार सुणी करी, इणि अवसरे जिनराय । तस दुख टाली वाली, रथ व्रत लेवा जाय ॥ तव वाला दुख काला, परवशि करेंरे विलाप, कहिये जो हवे हुँ मी, तो देश्यो व्रत आप ॥ ६ ॥ सहस पुरुषश्युं संयम, लिये शामल तनु कंति । ज्ञान लही व्रत आपे, राजीमती शुन्ज शंति ॥ वरप सहस आउखु, पाली गढ गिरनार । परण्या पूर्व महोत्सव जव गंमी शिवनार ॥ ७ ॥ सहस अढार मुनीसर, प्रजुजीना गुणवंत । चालीश सहस सुसाहुणी, पामी नवनो अंत ॥ त्रिजुवन अंवा अंवा, देवी सुर गोमेध । प्रनु सेवामां निरता, करता पाप निषेध ॥ ७॥ अमल कमल दल लोचन, शोचन रहित निरीह । सिंह मदन गज नेदवा, ए जिन अकल अबीह ॥ शृंगारी गुणधारी, ब्रह्मचारी शिर लीह । कवि

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