Book Title: Atmanand Stavanavali
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Babu Saremal Surana

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Page 301
________________ अष्टप्रकारी पूजा। २६५ पूजना रे, करतां पाप पलाय । जेम जयसुरने शुजमति रे, पाम्या अविचल गय ॥ ज०॥ ६ ॥ (काव्यम्) जगदुपाधिचयाद रहितं हितं, सहजतत्त्वकृते गुणमन्दिरम् । विनयदर्शनकेसरचन्दनरमलहन्मलहन्जिनमर्चये ॥ १ ॥ ॥ इति द्वितीय चन्दनपूजा समासा ।। अथ तृतीय कुसुमपूजा। ॥दोहा॥ त्रीजी कुसुमतणी हवे, पूजा करो सदनाव । जेम दुप्कृत पूरे टले, प्रगटे आत्म स्वनाव ॥ १ ॥ जे जन पद ऋतु फूलशें, जिन पूजे त्रण काल | सुर नर शिव सुख संपदा, पामे ते सुरसाल ॥२॥ ढाल त्रीजी। ( साहेलडीयांनी देशी) कुसुम पूजा नवि तुमे करो, साहेलडीयां । श्राणी विविध प्रकार, गुण वेलमीयां ॥ जाई जुई केतकी सा० । ममरो मरुयो सार गु० ॥ १ ॥ मोघरो चंपक मालती सा । पामल पद्म ने वेल गु० ॥ वोल सिरी जासूलशुं सा० । पूजो मनने गेल

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