Book Title: Atmanand Stavanavali
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Babu Saremal Surana
View full book text
________________
अष्टप्रकारी पूजा |
२६९
अमर गति सुख अनुभवी, शिवपुर पोहोती सोय || जि० ॥ ५ ॥
( काव्यम् )
बहुलमोहनमिस्त्र निवारकं स्वपरवस्तुविकासनमात्मनः । बिमलबोधसुदीपकमादधे भुवनपावन पारंगताग्रतः ॥ १ ॥ ॥ इति पंचम दीपकपूजा समाप्ता ॥
अथ षष्ट प्रतपूजा । || दोहा || सम कितने अजुवालवा, उत्तम एह उपाय । पूजाथी तमे प्रीठजो, मनवंठित सुख थाय ॥ | १ || अक्षत शुद्ध अखंमशुं, जे पूजे जिनचंद | लहे खंमित तेह नर, अक्षय सुख यानंद ॥ २ ॥
ढाल वही ।
( धर्म जिणंद दयालजी धर्मतणां दाता, ए देशी ) अक्षत पूजा जवि कीजेजी, अत फल दाता | शालि गोधूम पण लीजेजी ० । प्रभु सन्मुख स्वस्तिक कीजेजी ० | मुक्ताफल वीच में दीजेजी ० ॥ १ ॥ एवा उज्वल यक्षत

Page Navigation
1 ... 303 304 305 306 307 308 309 310 311