Book Title: Atmanand Stavanavali
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Babu Saremal Surana
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अष्टप्रकारी पूजा ।
॥ ढाल चोथी ॥
( सामरी सुरन पर मेरो दिल अटक्यो, ए देशी ) रिहा आगे धूप करीने, नर नव लाहो लीजेरी | अगर चंदन कस्तूरी संयुत, कुंदरुमांहि धरीजेरी || रि० ॥ १ ॥ चूरण शुद्धि दशांग अनोपम, तुरुक अंबर नावीजेरी । रत्न जमित धूपधारणामांहे, शुन घनसार वीजेरी || अरि० ॥ २ ॥ पवित्र थई जिन मंदिर जईने, प्राशय शुद्ध करीजेरी | धूप प्रगट वामांगे धरतां, जव जव पाप हरीजेरी ॥ यरि० ॥ ३ ॥ समता रस सागर गुण आगर, परमातम जिन पूरारी । चिदानंद घन चिन्मय मूरति, जगमग ज्योति सनूरारी ॥ अरि० ॥ ४ ॥ एहवा प्रजुने धूप करंतां, अविचल सुखमां लहिये। । इहजव परजव संपत्ति पामे, जेम विनयंधर कहियेरी ॥ अरि० ॥ ५ ॥
२६७
( काव्यम् )
अशुभपुगलसंचयवारगां शमसुगन्धकरं तपधूपनम | भगवना सुपुरोहितकर्मणा जयवती यतोऽक्षयसंपदा ॥ १ ॥ ॥ इति चतुर्थ धृपपूजा समाप्ता ॥

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