Book Title: Atmanand Stavanavali
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Babu Saremal Surana
View full book text
________________
२७२
श्रीदेवविजयजी कृत
( काव्यम्) अमलशान्तरसैकनिधिं शुचिं, गुणफलैर्मलदोषहरैर्हरम् । परमशुद्धिफलाय भजे जिनं, परहित रहितं परभावतः ॥ १॥
॥ इति सप्तम फलपूजा समाप्ता ।।
॥ अथ अष्टम नैवेद्यपूजा ॥
॥दोहा॥ नव दव दहन निवारवा, जलद घटा समजेह। जिनपूजा युगते करी, त्रिविधे कीजे तेह ॥१॥ पूजा कुगतिनी अर्गला, पुण्य सरोवर पाल । शिवगतिनी साहेलमी, आपे मंगल माल ॥ २ ॥ शुन नैवेद्य शुन नावशं, जिन आगे धरे जेह । सुरनर शिवपद सुख लहे, हलिय पुरुष परे तेह ॥३॥
॥ ढाल आग्मी ॥ ( श्रावण मासे स्वामी मेली चाल्या रे, ए देशी )
हवे नैवेद्य रसाल प्रजुजी आगेरे । धरतां नवि सुखकार, प्रजुता जागरे । कंचन जमित उदार, थालमां लावो रे । तार तार मुज तार, नावना नावारे ॥ १ ॥ लापसी सेव कंसार, लागु ताजारे । मनोहर मोतिचूर, खुरमा खाजा रे । वरफी पेंमा खीर, घेवर घारीरे । साटा सांकली

Page Navigation
1 ... 306 307 308 309 310 311