Book Title: Atmanand Stavanavali
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Babu Saremal Surana

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Page 310
________________ २७४ श्रीदेवविजयजी कृत-- ढाल नवमी। ( नमो भवि भावशुं ए, ए देशी) अष्टप्रकारी चित्त नाविये ए, आणी हर्ष अपार।जविक जन सेविये ए। अष्ट महासिद्धि संपजे ए, अम बुद्धि दातार ॥ नविः ॥ १॥ अम दिट्टि पण पामिये ए, पूजाथी नवि श्रीकार । न । अनुक्रमे अष्ट करम हणी ए, पंचमी गति लहो सार ॥ न ॥२॥ शा न्हाना सुत सुंदरूए, विनयादिक गुणवंत । न । शाह जीवणना कहेणथी ए, कीयो अन्यास ए संत ॥ न० ॥३॥ सकल पंमित शिर सेहरो ए, श्रीविनीतविजय गुरुराय । न | तास चरण सेवा थकी ए, देवनां वंबित थाय ॥ न ॥४॥ शशि नयन गर्ज विधु वरू ए, नाम संवत्सर जाण । न । तृतीया सित आसो तणीए, शुकरवार प्रमाण ॥ ज०॥५॥ पादरा नगर विराजता ए, श्रीसंजव सुखकार । न । तास पसायथी ए रची ए, पूजा अष्ट प्रकार ॥ नम्॥६॥

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