Book Title: Atmanand Stavanavali
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Babu Saremal Surana

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Page 300
________________ २६४ श्रीदेवविजयजी कृत ॥ अथ द्वितीय चन्दनपूजा ॥ (दोहा) हवे बीजी चंदन तणी, पूजा करो मनोहार । मिथ्या ताप अनादिनो, टालो सर्व प्रकार ॥१॥ पुद्गल परिचय करी घणो, प्राणी थयो दुर्वास | सुगंध अव्ये जिन पूजीने, करो निज शुद्ध सुवास ॥ ॥ ढाल बीजी॥ ( मनथी डरणां परनारी संग न करणां, ए देशी ) नवि जिन पूजो दुनियामां देव न दूजो। जे अरिहा पूजे, तस नवनां पातक भ्रूजे ॥ ज० ॥१॥ प्रनु पूजा बहु गुण जरीरे, कीजे मनने रंग । मन वच काया थिर करीरे, अरचो अरिहा अंग ॥ न० ॥॥ केसर चंदन घसी घणुं रे, मांहे नेली घनसार । रत्न कचोलीमांहि धरी रे, प्रनु पद चरचो सार ॥ ज० ॥३॥ नव दव ताप शमाववा रे, तरवा नव जल तीर । आतम सरूप निहालवा रे, रूमो जगगुरु धीर ॥ ज० ॥४॥ पद जानु कर अंस शिरे रे, नाल गले वली सार । हृदय उदर प्रजुने सदा रे, तिलक करो मन प्यार ॥ न ॥ ५॥ एणि विध जिनपद

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