Book Title: Atmanand Stavanavali
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Babu Saremal Surana
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अथ । ॥ श्रीदेवविजयजी कृत अष्ट प्रकारी पूजा ॥
तत्र। ॥प्रथम न्हवण पूजा ।।
॥दोहा॥ अजर अमर निकलंक जे, अगम्य रूप अनंत । अलख अगोचर नित्य नमुं, परम प्रजुतावंत ॥१॥ श्रीसंनव जिन गुणनिधि, त्रिजुवन जन हितकार। तेहना पद प्रणमी करी, कहिशुं अष्ट प्रकार ॥२॥ प्रथम न्हवण पूजा करो, बीजी चंदन सार । त्रीजी कुसुम वली धूपनी,पंचमी दीपमनोहार॥३॥ अदत फल नैवेद्यनी, पूजा अतिहि उदार । जे नवियण नित नित करे, ते पामें नवपार ॥४॥ रतन जमित कलशे करी, न्हवण करो जिन नूप । पातक पंख पखालतां, प्रगटे आत्म स्वरूप ॥५॥ अव्य नाव दोय पूजना, कारण कार्य संबंध । लावस्तव पुष्टि जणी, रचना अव्य प्रबंध ॥६॥

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