Book Title: Atmanand Stavanavali
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Babu Saremal Surana
View full book text
________________
चोविशी।
२५१
॥३॥सण समेतशिखर शिवपद लघु, मुनीअमसठ हजार । स एक लाख प्रनु साहुणी, वली अह शत निरधार ॥ स० वि०॥४॥ स षण्मुख दिता प्रन्नु तणे, शासनधर अधिकार । सन् श्रीनयविजय विबुधतणा, सेवकने जयकार ॥ स० वि० ॥५॥
श्रीअनंतनाथ जिन स्तवन ।
(इडर आंवा आंवलीरे, ए देशी) नयरी अयोध्या ऊपनारे, सिंहसेन कुलचंद । सींचाणो लंबन नलारे, सुयसा मातानो नंद । नविक जन सेवो देव अनंत ॥ १॥ वरप त्रीश लाख पाउरे, उंचा धनुषपंचाश | कनक वरण तनु सोहतोरे, पूरे जगजन आश ॥ १० ॥ ॥५॥ एक सहसश्युं व्रत ग्रहीरे, समेत शिखर निरवाण । गसठ सहस मुनीश्वरुरे, प्रजुना श्रुत गुण जाण ।। न० ॥ ३॥ वासठ सहस सुसाहुणीरे, प्रजुजीनो परिवार । शासनदेवी अंकुशीरे, सुर पाताल उदार ॥ न० ॥ ४ ॥ जाणे निज मन दासतुंरे, तूं जिन जग हितकार । बुध जश प्रेमें विनवरे, दीजे मुज दीदार ॥ न ॥ ५ ॥

Page Navigation
1 ... 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311