Book Title: Atmanand Stavanavali
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Babu Saremal Surana
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चोविगी।
२५५
श्रीअरनाथ जिन स्तवन ।
( समारे साद दिइरे देव, ए देशी ) अरजिन गजपुर वर शिणगार, तात सुदर्शन देवी मदहार । साहिव से वियें, मेरे मनको प्यारो से वियें । त्रीश धनुष प्रजु उंची काय, वरष सहस चोराशी आय ॥ सा ॥ १ ॥ नंदावर्त विराजे अंक, टालें प्रनु नव नावना आतंक सा० ॥ एक सहसश्युं संयम लीध, कनक वरण तनु जगत प्रसिझ॥सा॥२॥ समेत शिखर गिरि सवल उगह, सिकिवधूनो करेरे विवाह । सा । प्रजुना मुनि पंचास हजार, साठ सहस साध्वी परिवार ॥ सा ॥ ३॥ यद इंश प्रजु सेवाकार, धारिणी शासननी करे सार। सा । रवि उगे नासे जिम चोर, तिम प्रजुना ध्याने करम कगेर ॥ सा ॥ ४ ॥ तुं सुरतरु चिंतामणि सार, तुं प्रनु जगति मुगति दातार । सा। वुध जशविजय करे अरदास, दी- परमानंद विलास ॥ सा ॥५॥
श्रीमतिनाथ जिन स्तवन ।
(प्रथम गोवालातणे भवेजी, ए देशी) मिथिला नयरी अवतयोंजी, कुंन नृपति

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