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स्तवनावली |
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फंद ॥ ० ॥ ६ ॥ वीरविजय कहे आदि जिनेश्वर । यो प्रभुजी परमाणंद ॥
० ॥ ७ ॥
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|| श्रीगंधारमंन श्री चिन्तामणिपार्श्वजिन स्तवन ॥
॥ मेरे तो चिन्तामणि प्रभु पासजी का काम है जी ॥ कणी ॥ जलधि किनारे जारा, नगर गंधार सारा । चिंतामणि पास प्रभुका, जहां वा धाम है जी || मे० ॥ १ ॥ मूरति प्रभुकी मीठी, ऐसी वी नाही दीठी । शान्त सुधारस केरा, मानुं एक गम है जी ॥ ० ॥ २ ॥ 5पम कालमें स्वामी, दुःखकी है नाही खामी ॥ श्रानंद समाधि दीजे, मुजे वमी हाम है जी ॥ मे० ॥ ३ ॥ अखूट खजाना तेरा, थोमा बहोत करदो मेरा । सुख जनकुं देना वेतो, प्रभु तोरा काम है जी ॥ मे० ॥ ४ ॥ विरूद्ध संजाल लीजे, मेरा तेरा नाहीं कीजे । तरण तारण ऐसा, प्रभु तोरा नाम है जी ॥ मे० || ५ || वीर कहे सीर नामी, सुनो हो गंधारस्वामी ॥ देना हो तो ज्ञान देदो. पुजा नही काम है जी ॥ ० ॥ ६ ॥