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___ चोविशी। २३३ के साहिब शिर थकेरे । चोर जोर जे फोरवें, मुजश्युं श्क मनेरे के मु।गज निमीलिका करवी, तुजनें नवि घटेरे के तु। जे तुज सन्मुख जोतां, अरिनुं बल मिटेरे के अ॥रणारवि उगे गयणंगणि, तिमिर ते नवि रहेरे के ति । कामकुंन घर आवें, दारिज किम लहेरे के दा । वन विचरे जो सिंह तो, बीह न गजतणी रे के बी० । कर्म करे श्युं जोर, प्रसन्न जो जगधणी रे के प्र० ॥॥ सुगुण निर्गुणनो अंतर, प्रजु नवि चित्तें धरेरे के प्र । निर्गुण पण शरणागत, जाणी हित करे रे के जा । चंद त्यजें नवि लंडन, मृग अति सामलो रे के मृण् । जश कहे तिम तुम्ह जाणी, मुज अरि बल दलोरे के मु० ॥३॥
श्रीशांतिनाथ जिन स्तवन ।
जग जन मन रंजे रे, मनमथ बल नंजेरे। नवि राग न दोस तूं, अंजे चित्तश्युं रे ॥१॥ शिर बत्र विराजे रे, देव कुंकुनि वाजेरे । उकुराश् श्म गजे, तोहिं अकिंचनोरे ॥२॥ थिरता धृति सारी रे, वरी समता नारी रे। ब्रह्मचारी शि रोमणि, तो पण तुं सुण्यो रे ॥३॥ न धरे नवरं
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