Book Title: Atmanand Stavanavali
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Babu Saremal Surana

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Page 283
________________ चोविशी। २४७ अढी प्रजुजी तणा, तेम संयम गुणह निधान । त्रण लाख वर साहुणी वली, असीअ सहसनुं मानरे, कहे कवियण जस गुणगानरे, जिणे जित्या क्रोधने मानरे, जेणे दीधुं बरसीदानरे, वरषाजलधर अनुमानरे ॥ ए॥४॥ सुर विजय नाम नृकुटी सुरी, अनु शासन रखवाल । कवि जशविजय कहे सदा, ए प्रणमो प्रनु त्रिहु कालरे, जस पद प्रणमे नूपालरे, जस अष्टमी शशि सम नालरे, जे टाले जवजंजालरे ॥ ए० ॥ ५ ॥ श्रीसुविधिनाथ जिन स्तवन । ( भावना मालती चुसीए, ए देशी ) सुविधि जिनराज मुज मन रमो, सवि गमो नवतणो तापरे । पाप प्रभु ध्यानथी उपशमो, वीशमो चित्त शुन्न जापरे ॥ सु० ॥ १॥ राय सुग्रीव रामा सुतो, नयरी काकंदी अवताररे । मच्छ लंबन धरे आउखु, लाख दोश् पूर्व निरधाररे ॥ सुण ॥२॥ एक शत धनुप तनु उच्चता, व्रत लिए सहस परिवाररे । समेतशिखर शिवपद लहें, फटिक सम कांति विस्ताररे ॥ सु० ॥ ३॥ लाख दोश् साधु प्रजुजीतणा, लाख एक सहस

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