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१८६ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत-- संघ सकल आग्रह करी रे । विनती करे मनोहार ॥ चा० ॥ नव्य जीव प्रतिबोधवारे । गुरुजी करे चौमास ॥ चाण . ॥ ५॥ संघ सकल हवे आदरेरे । जिन नक्ति बहुमान ॥ चा ॥ नवनवी पूजा प्रनावनारे । अाई महोच्छव गठ॥ चा० ॥ ६ ॥ समकीत नीरमल जेहथीरे । तेह तणा बहुमान ॥ चा० ॥ ओच्छव रंग वधामणारे। वा ले जय जयकार || चा ॥७॥ सहीयर सवी टोले मलीरे । आवे गुरु दरबार ॥ चा ॥ चहुं गति चुरण साथीयोरे । करती गुरुने पाय ॥ चा ॥ ७॥ गुणवती गावे घौवलीरे । नाव नले उदार ॥ चा० ॥ राजनगरमें हुई रहारे । आनंद मंगल गठ ॥ चा ॥ए ॥ उत्तम गुरु गुण गावतारे | नांगे नवनी पास ॥ चा ॥ वीरविजय मुनि हुई रहारे । आतम समीके दास ॥ चा० ॥ १० ॥
॥ गुंदली त्रीजी ॥ ॥ जिणा करमर वरसे मेह निंजे मारी
चुंदमली, ए देशी॥