________________
१७८ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृतमान्यो मोद सुख पाई। वीरविजय कहे धन्य कमाई ॥ मो ॥ ४ ॥
पद त्रीजुं।
॥ मालकोश ॥ मेनुं बमके गिरनारी गये मेरे सांही । में नुली नहीं जब पकमती दो बांही ॥ मे ॥१॥ था दिलों में दगा तब क्युं कीनी सगाई। मालिक मैंने कीनी क्या ऐसी बुराई । मे ॥२॥ फूही है बुरी है दुनियांकी सगाई। वैराग्य लियो है गिरनारी जाई । मे ॥३॥ बमा तप करके मोद पद पाई। कहे वीर विजय धन्य उनकी कमाई ॥ मे ॥४॥
॥ अथ वैराग्य पद ॥
॥ राग सारंग ॥ ' घट जागी ज्ञान वैराग्यरी । तुम बमो माया जालरी ॥ घट ॥ आंकणी ॥ एक सहस्र अंतेउर जाके । रूप रूपके आगरी । मिथिला राज्य बोमके निकसे । राज ऋषि नमि रायरी ॥ १० ॥ ॥ १ ॥ रूपकी संपद सुरपति बरनी । चक्रि