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सज्झायो।
१८३ दुनियां दुखकी खानी। जिहां राग द्वेष है पानी। ए महावीर की वानी। हे खुरक स्वादका स्वाद, नहीं थाबाद, बमा दुख नारा ॥ श्न ॥२॥ बम मोह पास गले मारा। प्रजु नाम पकमले प्यारा । करले गुरु ज्ञान विचारा । ए सो बातन की बात, रहेगी लाज।सवी सुख सारा॥श्न॥३॥ वैराग्यकी बातां दाखी। विषयों में म करो फांखी। कहे वीर विजय में शाखी । है सब दुखोंका मूल, नहीं अनुकूल, मो मेरे प्यारा ॥ श्न ॥४॥
॥ श्रीनेम राजुल सज्काय ॥ तूं उमदे स्वामी शिव शोकनको संग ॥ आंकणी ॥ बहोत बरातसें व्याहन आये । ते अब क्यु पावत नंगरे ॥ तु ॥ १ ॥ सतीव्रत धारी में बाल कुमारी । ते करले मुजसु रंगरे ॥ तुं ॥ ॥ शिव रमणिकी कुमी हे करणी । ते परणी सिझ अनंतरे ॥ तुं०॥ ३ ॥ कामणगारी मुख देन हारी। ते करती रंगमें नंगरे ॥तु॥४॥ मोमन मतियां तो हमरी क्या गतियां । बतियां होत हे नंगरे ॥ तुं० ॥ ५॥ विनती न धारी