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स्तवनावली।
१६१ श्रीपावापुरी महावीर जिन स्तवन ॥ __ हर लिया हर लिया हर लियारे, मेरा मनवा महावीरजीने हर लियारे ।। आंकणी ॥ विचरता वीर जिनेश्वर आया । पावापुर पावन कीयारे ॥ मे ॥ १ ॥ सुरवर समोवसरणकी रचना । करी जक्तिमें जर गीयारे ॥ मे ॥२॥ सिंहासन प्रजुजी बिराजी। देशना अमृत वरसियारे ॥ मे ॥ ३ ॥ शोल पहोर प्रनु देशना दीनी । अवसर अणशण का लीयारे ॥ मे ॥ सर्वसमाधी अपशण पाली । मन वच काया वस कीयारे । मे ॥५॥ शिववधु वरिया, नवोदधि तरिया । पारंगतका पद लियारे ।। मे ॥ ६ ॥ मोद कल्याणिक महोच्छव जाणी । शादिक सब मिल गीयारे ॥ मे ॥७॥ बसे गठसे महोच्छव करके । नाम पावापुरी कह गियारे । मे० ॥ ७॥ तीरथ नेटी नवदुःख मेटी । आतम आनंद ले लियारे ।। मे॥ए॥ ओगणिसे बासठ माघ शुदकी । पंचमी दिन पावन थियारे ।। मे ॥ १० ॥ वीरविजय कहे वीर जिणंदका । दर्शण बिन हम रह गयारे ।। मे ॥ ११ ।।