________________
स्तवनावली।
॥ आगराममन चिंतामण जिन स्तवन ॥
. ॥राग कनडा शियाना ॥ चिंतामणजी पास मोहे प्यारा । मन वंबित के पूरण हारा । नाम मंत्र जपलो एकवारा । कठिन करमके चुरनहारा | चिं० ॥ १॥ अरज एक प्रजुजीसें मोरी । सेवा चाहु में नव नव तोरी । लद चौरासी रुलता में आया । पुरव पुन्य चिंतामणि पाया ॥ चिं॥२॥ और देवन की सेवा में कीनी । पापकी गठमी में सीर लीनी । कहो रे न मान्यो कुमति वस किसको। प्यालो न पीयो अमृत रसको ॥ चिं० ॥ ३ ॥
और देवनकुं कबहुं न मानुं । सच्चा पास चिंतामणि जानुं । प्रजुके चरण शरण कर लीनी। और देवनकुं जलांजली दिनी ॥ चिं० ॥४॥ आगरा मंमन सब फुःख खमन । पास चिंतामणि शीतल चंदन । वीरविजय कहे तपत बुजावो । नाम जगतमें हे तुम चावो || चिं० ॥ ५॥ जुग रस निधि छ वत्सरमें । मास नामपद शुक्ल पक्ष में। दिन संवच्छरीका जव आया । चिंतामणि पास गुन गाया ॥ चिंग ॥ ६ ॥
--- -