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स्तवनावली। मूरति मोहनगारी ॥ मोरा० ॥ तु० ॥ ७॥ वीरविजय कहे प्रजुजी नेटी । उरगति फुःख निचारी ॥ मोरा॥ तु ॥ ए॥
वीकानेर समोसरणका स्तवन । ॥ अपने पदको तजकर चेतन, ए देशी ॥
देखो प्रजुका अजब महोच्छव । कैसा गठ जमाया है। बीकानेर में संघ सकल मिल । समोसरण विरचाया है ॥ दे ॥॥१॥ क्या कहुँ मंम्पकी शोना । कहे विन कोउ न रहेता है । देवलोक का एक निशाना । देखन वाला कहेता है ।। देव ॥२॥ चौमुख समोसरण में सोहै। जिनवर मुज मन नाया है । दरिशण वाहाने देखो प्रजुकुं । कैसा ध्यान लगाया है। दे० ॥३॥ चामर न सिंहासन सोहै । जगमग ज्योति सवाया है । देख देखके प्रजु दरिशणकुं । नगर लोक सव आया है ।। दे० ॥ ४ ॥ अजितनाथ प्रजुकी महिमा का । चमतकार ए पाया है। बीकानेर में आज अनोपम । धवल मंगल वरताया है ॥ देव ॥ ५ ॥ गान तान सव साज मा.