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श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत
हेम रूप धारत मेरे जाई ॥ जज ले धरमनाथ एक वारा । आतम हित कर ले तुं प्यारा ॥ औ० ॥ २ ॥ इन बिन और देव नहीं जो । विधिसें धरम जिणंदकुं पूजो ॥ मनमें ध्यान धरो एक धारा । कामित फलके देवन हारा ॥ औ० ॥ ३ ॥ नूतन मंदिर आप पधारो । एही सेवक अरजी अवधारो || घंटारव नौबत जब गाजे । तब सेवकको आनंद जागे ॥ पुरव पुन्य दरिशण पायो । जब में आयो । वीरविजयकी विनती रही । नंद मुजको देह ॥ ० ॥ ५ ॥
० ॥
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हेमनगर में तम या
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श्री हुशियारपुर मंगन वासुपूज्य जिन स्तवन ।
॥ राग खमाच ॥
|| आज दुविधा मेरी मिट गई, ए देशी ॥ वासुपूज्य जिनराज आज मेरो मन हर ली - नोरे ॥ कणी ॥ वासव वंदित पद कज द्वंद | वसुपूज्य राजाके नंद । जविक कमल विकास चंद, तनू रक्त रंगीलोरे ॥ वा० ॥ १ ॥ कामित