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म्नवनावली । र रूपसे हारीजी ॥ नव ॥ ५ ॥ सुखने मटके लोयण लटके, मोह्यां सुर नर कोमी । और देवनकुं हम नहीं ध्यावे, एम कहे कर जोमीजी ॥ नव० ॥ ३ ॥ तुं जगस्वामी अंतर जामी. यातम रामी मेरा । दिल विसरामी तुमसे मांगु, टालो नवका फेराजी ।। नव ॥ ॥ ४ ॥ कल्पवृद चिंतामणि आशा, पूरे नहीं जम नापा ॥ तीन नुवनके नायक जिनजी, पूरो हमारी श्राशाजी ॥ नव० ॥ ५ ॥ दायक नायक . तुम हो साचा, और देव सव काचा।हरि हर ब्रह्म पुरंदर केरा, जुने जुर तमासाजी ॥ नव० ॥६॥ लटक लटक घोघा बंदरमें, दर्शन मुर्लन पाया। वीर विजय कहे आतम आनंद. आपो जिनवर गयाजी ॥ नव० ॥ ॥
सणवतरा मंमन श्रीधर्मनाथ स्तवन ।
॥ राग कानडा ॥ और न ध्यावं में और न ध्याचं ॥ धरम जिणंदसें लगन लगाउं ॥ ध्यान अगन से करम जलाउं । छिनमें परमातम पद पाठं । यो ॥ १॥ लोद पाराको संगम पाई।