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स्तवनावली |
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कंचन कामनी संग | कमले क्युं यावदांजी ॥
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क० ॥ १ ॥ मनुष्य जनम यदा ॥ निंदमें क्युं सोई रेंढा । शुपनशी माया तेनु । फेर नहीं पावदांजी ॥ क० || २ || प्रभु हे पुरनचंद । त्र्यश्वसेन राय नंद | धन दिन आज सामा | प्रभु घर यावदांजी ॥ क० ॥ ३ ॥ शीफत करां में केती । जिजान तो नांही रेंदी | सुर गुरु गुण तुं सांदा । पार नहीं पावदां जी ॥ क० ॥ ४ ॥ मनके मोहन पामी, पुरतो पट्टी के स्वामी । अव तो न रखो खामी । वीरविजे गावदांजी || क० ॥ ५ ॥
श्री घोघामंकण नवखंमा पार्श्व जिन स्तवन ।
घनघटा जुवन रंग छाया, नव खंमा पाशजि पाया ॥ त्र्यांकणी ॥ प्रभु कमत हवीकुं हवाया । विषधर परजलती काया | दिल दया धरी के ठोमाया । सेवक सुख मंत्र सुणाया । क्षणमें धरऐंद्र बनाया ॥ घ० ॥ १ ॥ में और देवनकुं ध्याया । सब फोगट जनम गमाया । सुनो वामाराणीका जाया । कुछ परमारथ नहीं पाया ।