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स्तवनावली |
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जी मारा राज । जव जवके संचित पाप करमकुं मेटो जी मारा राज || प्रीत० ॥ १ ॥ पूरव नवाणुं वारा जी मारा राज | प्रभु रुषन जिणंदा चरणे चल कर आया जी मारा राज || प्री० ॥ २ ॥ राजादनी तरु बाया जी मारा राज । तुमे दिल नर देखो रूपन जिणंढ़ के पाया जी मारा राज ॥ प्रीत० ॥ ३ ॥ पुंसरीक गणधर आदि जी मारा राज | मुनि मुक्ति सधारे टाली सर्व उपाधि जी मारा राज || प्रीत० ॥ ४ ॥ प्रीतम तीरथ मोटंजी मारा राज | कांई ढील करोबो अमने लागे खोटुं जी मारा राज || प्रीत० ॥ ५ ॥ मिथ्या निंद हावो जी मारा राज । ए तीरथ जाके कुमतिके गढ ढावो जी मारा राज || प्रीत० ॥ ६ ॥ दुरजनरा नरमाया जी महारा राज । चेतनजी थे तो चौगती में चटकाया जी मारा राज || प्रीत० ॥७॥ ए पावन तीरथ पामी जी मारा राज । सब दुःखके चूरण मत करजो तुमे खामी जी मारा राज ॥ प्रीत० ॥ ८ ॥ चितमामें नित्य ध्यावोजी मारा राज । गिरिवर के फरसी परमानंद पद पावो जी मारा राज || प्रीत० ॥ एए ॥ सुमता सखीरी वाणी मारा राज | तुम चित्तमां धरजो वरजो शिव पट
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